दीपावली और विष्णोइ पंथ | जय खीचड़

आप सभी स्नेही जनों को पंच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
|| दीपावली और विष्णोइ पंथ ||


|| दीपावली और विष्णोइ पंथ ||

श्री राम के रावण विजयोपरांत 14 वर्ष के वन-वास काट अयोध्या आगमन पर अयोध्या की जनता ने घी के दीपक जला कर सामूहिक खुशी मनाई । श्री राम के नाम से नगर में जले दीपक से दीपावली( दीपोँ की अवली/पंक्ति) पर्व के रूप में प्रचलित है । जो आपसी प्रेम, सौहार्द और प्रकृति प्रेम का परिचायक है । आपसी मिलन का त्योहार है दीपावली !
विष्णोइ विचारधारा में दीपावली का त्योहार की अपनी अलग विशेषता है । श्री जम्भेश्वर भगवान ने संवत् 1542 कार्तिक वदी अष्टमी को सम्भराथल की पावन धरा पर विराजमान होकर महान यज्ञ का शुभारंभ उपस्थित जन-वृंद को पाहल(मंत्रित जल) देकर विष्णोइ विचारधारा के प्रतिपादन के साथ किया । यह यज्ञ कार्तिक अमावस्या (दीपावली) को संपन्न हुआ । यह यज्ञ मानव व प्रकृति प्रेम के सार है । कार्तिक वदी अष्टमी से अमावस्या(दीपावली) तक विष्णोइ जन यज्ञ अनुष्ठान के साथ से विष्णोइ धर्म स्थापना महोत्सव के रूप में मनाते है । सद्गुरु जाम्भोजी द्वारा प्रतिपादित यह प्रेरक परंपरा अपने आप में विरली व पर्यावरण संवृद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । 
। राम राज्य की संकल्पना का परिष्कृत रूप सद्गुरु जांभोजी द्वारा प्रतिपादित इस प्रेरक परंपरा में दृष्टिपात होता है । सद्गुरु जाम्भोजी की सद्प्रेरणा हमें जीवन में आने वाले पावन पर्व को सहज भाव से मनाने की शिक्षा देती है । दीपावली उत्साह, उल्लास और आपसी सद्भाव का पावन पर्व है । आइए हम सद्गुरु जाम्भोजी द्वारा आज से 534 वर्ष पूर्व प्रारंभ पर्यावरण पोषण से परिपूर्ण प्रेरक परंपरा "दीपोत्सव पर्व" पर यज्ञ(हवन) अनुष्ठान! के साथ मनाए यह पावन-पर्व ।
दीपोत्सव का पर्व आपके जीवन में प्रेम प्रकाश का संचार करे, आपका जीवन धन-धान्य व ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो! श्री हरि से प्रार्थना है ।


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