हमारी परम्परा और युवा समाज | नेमाराम माचरा

 हमारी परम्परा और युवा समाज | नेमाराम माचरा

हमारी परम्परा और युवा समाज | नेमाराम माचरा


परम्परा किसी भी देश अथवा समाज की शान हुआ करती है। परम्परा पर चलने वाला समाज उत्तरोत्तर प्रगति करता हैं, इसके विपरीत परम्परा से मुह मोड़ लेने वाला समाज अपनी सांस्वमत्तिक एवं सामा जिक प्रगति नहीं कर पाता। जिस समाज में परम्पराओं का पोषण होता हैं, उस समाज की अपनी अलग पहचान होती है। जबकि जिस समाज में परम्पराओं का तिरस्कार होता है, उस समाज की सामाजिक पह चान धूमिल हो जाती हैं। अन्य भारतीय समाजों की भांति विश्नोई समाज की सामाजिक प्रतिष्ठा समाज द्वारा परम्पराओं के पालनद्वारा मजबूत हुई थी। विश्नोई समाज अपनी स्थापना से लेकर आज तक अनेक ऐसी परम्पराओं का पालन करता आ रहा है, जो बिश्नोई समाज को अन्य समाजों (जातियों) से विशष्ट बनाती है। बिश्नोई समाज ने पिछले 535 वर्षों से निरन्तर गुरु जम्भेश्वर भगवान द्वारा स्थापित परम्पराओं पर चलकर अपनी अलग पहचान बनायी है। आज आवश्यकता है इस पहचान को कायम रखने की 535 वर्षों में जिन लोगों ने परम्परा पालन द्वारा बिश्नोई समाज को प्रतिष्ठित बनाया। उस प्रतिष्ठा को आज के विश्नोई युवा मजबूती प्रदान करने में नाकमयाब रहा है। आधुनिकता के नशे में चूर तथाकथित बिश्नोई युवा परम्परा पालन में अपनी तौहीन समझते हैं तथा आधुनिक जीवन शैली अपनाकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। एक-दूसरे को देखकर समाज के युवाओं द्वारा सामाजिक परम्पराओं का तिरस्कार किया जा रहा है, जो आने वाले समय में समाज के लिए घातक सिद्ध होगा। किसी जमाने में बोली और पहनावा देखकर बिश्नोई को पहचान लिया जाता था, मगर आज के बिश्नोई युवाओं की स्थिति को देखकर उस तरह से हमारी पहचान नहीं होती परम्परागत बिश्नोई पहनावा; युवकों व युवतियों का अब आधुनिक रूप ले चुका है। फैन्सी पहनावा अपनाकर खुद को बड़ा समझने वाले युवा आपस में मिलते हैं तो 'निवण-प्रणाम' के बजाय 'हेलो' 'हाय' बोलना अपनी शान समझते हैं। आज के युवा जब दूसरों को अपना परिचय देते हैं, तब 'बिश्नोई' शब्द के उच्चारण में 'गर्व' के बजाय 'अंहकार परिलक्षित होता है। इनके साथ-साथ युवाओं में इच्छित इंसान से विवाह (अंतरजातीय विवाह) की भावना बढ़ रही हैं। तथाकथित शिक्षित युवा आधुनिक जीवन शैली व अंतरजातीय विवाह को सामाजिक व्यवस्था का अंग बनाना चाहते हैं। मगर ये लोग यह भूल चुके हैं कि यदि आधुनिक जीवन शैली और अंतरजतीय विवाह को वास्तव में सामाजिक व्यवस्था का अंग बना दिया गया, तो बिश्नोई समाज की पहचान और प्रतिष्ठा खत्म हो जायेगी। युवा साथियों यदि हमें अपने समाज की पहचान और प्रतिष्ठा को बचाये रखना है, तो परम्पराओं का पालन अति आवश्यक है क्योंकि बिना परम्पराओं को पाले हमारी पहचान नहीं बचेगी।

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