कविता: रूंखा री राणी खेजड़ी | जय खीचड़

यह पंथ श्रेष्ठ की शान,
बनी जो इस जमीं से,
ढकने लगा है मरू,इस
सुंदर शमी से ।

खेजड़ली वाटिका हसीं
बनी शहादत की है जमीं
यह पंथश्रेष्ठ की शान है
इसकी जग में भी पहचान है
ये प्रकृति, ये वन्य जीव
हुए है आबाद,
इस जमीं से
 ढ़कने लगा है मरू, इस
सुंदर शमीं से ।


शमीं,  मरू की गोद से
खिल दे प्रसन्न, प्रमोद से
मरू सारा आबाद है 
मृग कश्यप से आजाद है
फल से लदी डाली, लगे
है जमीं से
ढकने लगा है मरू,इस
सुंदर  शमीं से।

कुछ धोरों पर खिले पुष्प है
हर जंगल में घुमे कश्यप है
तो भी है मानुस वन में प्रीत
आखिर होगी मानवता की जीत
बढ़ा मान पंथ-श्रेष्ठ का इस,
मरू जमीं से
ढकने लगा है मरू, इस
सुंदर शमी से ।                 

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