कविता : प्रकृति का पूजारी बिश्नोई | जय खीचड़

प्रकृति का पूजारी बिश्नोई


शिकारी की गोली से कैसे भयभीत हो सकता है,
जिसने खुद ही को वन्यजीव रक्षार्थ अर्पित
                                               कर दिया है।

द्विपगु हिँसक जानवर उसे डरा नहीँ सकते,
हिँसा के मध्य अहिँसा को जो चुना है।
जाम्भोजी के परम सन्देश (जीव दया पालणी)
                                     को आदेश माना है।

प्रकृति का पुजारी
                      भौतिक लोलुप्तता से परे,
प्रकृति के मूल पर कुठुरघात करते के सन्मुख
                                              नत होगा?
वह जिसने अपने आपको वन'जीव पर
                                   न्योछावर कर दिया,
उसे तो जीवन से कहीं अधिक वन'जीव प्यारे है,
उसके जीवन के मोल से वन'जीव अनमोल है।
मृत्यु तो शाश्वत है
वह उसके अधिकार को आधार प्रदान करता है
खुद मौत को गला जब शिकारी का प्रतिकार
                                             करता है।।।।

  

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