प्रेरक कहानी - 48 वर्षीय वन्य जीवों के रक्षक अनिल धारणिया की

 प्रेरक कहानी - 48 वर्षीय वन्य जीवों के रक्षक अनिल धारणीया की 

प्रेरक कहानी - 48 वर्षीय वन्य जीवों के रक्षक अनिल धारणिया की


राजस्थान अपनी भौगोलिक विषमताओं के कारण देश के अन्य प्रान्तों से भिन्न व पिछड़े प्रदेशों की सूची में आता है. वन व वन्य जीवों की दृष्टि से भी विपन्न माना जाता रहा है. उपर से भौतिक उन्नति के नाम कंकरीट के जंगल खड़े किये जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में जंगल का अमंगल हो रहा है. वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास उजड़ने से मानव आबादी की ओर आने को मजबूर हो रहे हैं जिससे शिकार गतिविधियों व श्वान के हमलों से उनके अस्तित्व पर संकंट बन गया है. भौतिक अभिलाषाओं के नाम पर प्राकृतिक संपदा को संकुचित करने के विपरित राजस्थान में एक समुदाय ऐसा भी है. जो सदियों से अपने गुरु की बताई राह पर चलते हुए वन व वन्य जीवों को बचाने के लिए समय-समय पर प्राणोत्सर्ग करता आया है. जी हां! आपने ठीक सोच हम बात कर रहें है बिश्नोई समाज की. बिश्नोई समाज के लोग आज भी सिद्दत से पर्यावरण संरक्षण व संपोषण में लगे हुए हैं. बिश्नोई समाज के कुछ लोग सामाजिक संगठनों के माध्यम से वन व वन्य जीवों को बचाने को प्रयासरत है तो किसी ने वन व वन्य जीवों को बचाने को ही अपने जीवन का पर्याय बना लिया. यह प्रेरक कहानी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी अनिल धारणीया की है जो विगत 30 वर्षों से वन्य जीवों को बचाने के लिए प्रयासरत है. वन्य जीवों के प्रति प्रेम अनील धारणिया की मनोवृत्ति बन गई है. इसी प्रेम के बल पर इन 3 दशकों तक हजारों हिरणों को शिकारियों और श्वानों के हमलों से बचा चुके है.



जीवन परिचय:


अनिल धारणीया का जन्म 02 अक्टुबर, 1972 को हनुमानगढ़ जिले के पिलीबंगा कस्बे के लखासर गांव में किसान परिवार में हुआ. चूंकि अनिल का जन्म बिश्नोई परिवार में हुआ तो संस्कार व स्वभाव से जीव प्रेमी होना नैसर्गिक था. धारणीया बच्चपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहे. यही कारण रहा कि धारणीया  सूरतगढ़ कॉलेज से बी.ए. करने के बाद बी.एड कर शिक्षक बनने के ख्वाब ले पिलीबंगा से सूरतगढ़ आए. कॉलेज लाइफ में इनकी जिन्दगी में टर्निंग पॉईंट आया और इन्होंने अपने जीवन का ध्येय वन व वन्य जीवों के संरक्षण को बना लिया.


बिश्नोई समाज के राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने से अनिल धारणीया के जीवन का ध्येय बदला


दरअ़सल हुआ यूं कि अनिल धारणिया की बी.ए. की पढ़ाई के समय वर्ष 1990 में सूरतगढ़ मेंबिश्नोई समाज के राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ. उसमें अनिल ने भी भाग लिया. सम्मेलन में वन व वन्य जीवों के निरन्तर हृास को लेकर चर्चा हुई. वक्ताओं ने कटते जंगलात और वन्य जीवों के विलुप्ति पर चिन्ता जाहिर की. उपस्थित लोगों से अपने-अपने क्षेत्र में वन व वन्य जीवों के संरक्षण को लेकर अपील की गई. इस आह्वान से अनिल धारणिया की मनोवृत्ति के भाव जागृत हो उठे. और यहीं से उन्होंने अपना लक्ष्य बदला. 


वन्य जीवों के संरक्षण को बनाया जीवन का ध्येय

मानद वन्य जीव प्रतिपालक अनिल धारणीया


उस सम्मेलन में किये गए आह्वान का असर अनिल पर इतना पड़ा कि उन्होंने बी.ए. करने के पश्चात बी.एड की शिक्षा तो ग्रहण की लेकिन शिक्षक बनने की राह छोड़ गांव लौट आए. गांव आकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करना प्रारम्भ की और लग गए वन्य जीवों के संरक्षण में. उस वक्त वन्य जीवों की कमी का कारण शिकार गतिविधियों में इजाफा होना था. धारणीया ने शिकारियों के खिलाफ मौर्चा खौल लिया. 

मानद वन्य जीव प्रतिपालक अनिल धारणीया

अकेले ही शुरु की मुहिम धीरे-धीरे जुड़ते गए वन्य जीव प्रेमी



अनिल धारणिया ने बताया  कि व्यक्तिगत स्तर पर उन्होंने अपने गांव लखासर से शिकारियों के खिलाफ धर-पकड़ अभियान की शुरुवात की. शिकार की भनक या सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचते जिससे शिकारियों को भागना पड़ता. इस प्रतिरोध की प्रबल क्षमता ने अनिल का मनोबल बढ़ा दिया. वो घालय हिरणों के उपचार करने लगे. वहीं शिकार रोकने के साथ ही शिकारियों के खिलाफ वाद दायर करने लगे. इससे उनकी पहचान आसपास के वन्य जीव प्रेमियों में बढ़ी. उनकी एकल टीम में अब लक्ष्मण बिश्नोई, महावीर बिश्नोई, विजय सहारण, दिलीप सीगड़, कुलदीप और इन्द्रपाल सहित बहुत से वन्य जीव प्रेमी जुड़ गए. जिससे इनके अभियान को गति मिली. लगभग 20 पंचायतों में हिरण शिकारियों के लिए यह मुहिम आफत लेकर आई. 


हिरणों के उपचार से लेकर गर्मियों में पानी की व्यवस्था तक करते हैं.

मानद वन्य जीव प्रतिपालक अनिल धारणीया

घायल हिरणों का उपचार अनिल खुद करते हैं. उनके घायलाव्यस्था से लेकर स्वस्थ होनें तक रखते अनिल अपने पुत्र सा ख्याल रखते हैं. मरहम पट्टी, चारा-पानी की व्यवस्था करते हैं. जब हिरण स्वस्थ होता हैं तो पुन: स्वच्छंद विचरण को छोड़ देते हैं. 2 वर्ष पूर्व क्षेत्र में घायल होने वाले हिरणों के आधिक्य व समय पर उपचार न होने से अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाले हिरणों को बचाने के लिए रेसक्यु सेंटर की मांग पर राज्य सरकार ने पिलीबंगा में एक रेसक्यु सेंटर खोला है. राज्य में कम बारिश के चलते गर्मियों में जल संकट का सामना करना पड़ता है. गर्मियों में हिरणों की प्यास बूझाने के लिए 3 वर्ष पूर्व श्री धारणीया ने 60 एनिकेट (छोटे बांध/खेळी) बनवाये. इस कार्य ग्रामीणों ने निर्माण सामग्री का सहयोग दिया. इन खेळियों में गर्मियों में टेंकर से पानी डलवाते हैं. 


वन विभाग के अधिकारियों से ज्यादा मुस्तेद रहते हैं धारणीया


विगत 3 दशकों में धारणीया ने वन्य जीवों को बचाने का कार्य मुस्तेदी से किया है. लगभग 10 हजार हिरणों को शिकारियों से बचाया है. वन कर्मी घटना के घण्टों बाद पहुंचने के लिए गाहेबगाहे चर्चा में रहते हैं लेकिन धारणीया ने वन विभाग के कार्य में हाथ बंटाने का कार्य किया है. धारणिया बताते हैं कि उन्होंने सौ से ज्यादा प्रकरणों में शिकारियों के खिलाफ वन व पुलिस विभाग में कार्यवाही करवाई है. इनमें 2 दर्जन मामलों में शिकारियों को सजा भी हो चुकी है. 


अनिल धारणीया के कार्यों की वन विभाग भी करता है सराहना.


धारणीया ने सिद्दत से वन विभाग के वन्य जीव संरक्षण का कार्य बीते 30 वर्षों में किया है. उनके इस अनुकरणीय प्रयास की सराहना करते हुए उपवन संरक्षक हनुमानगढ़ करण सिंह काजला कहते हैं -

अनिलजी का काम वाकई काबिले तारिफ है. इतने निस्वार्थ भाव से जीव रक्षा के कर्तव्य को निभाते मैनें किसी को नहीं देखा. अनिल ने वन्य जीवों को बचाने का ध्येय बना रखा है. वह जो करते हैं दिल से करते हैं. वन विभाग उनकी सेवाओं के लिए कृतज्ञ महसूस करता है." 


केवल हिरणों के संरक्षण तक ही सीमित नहीं धारणीया

घायल हिरण का उपचार करते अनिल धारणीया


अनिल धारणीया ने हर जीव की रक्षा करने का प्रयत्न रहा है. बटबड़, नीलगाय, कछुए, खरगोश और राज्य पशु हिरण से लेकर राष्ट्रीय पक्षी मोर तक की जीवन रक्षा धारणीयां ने अपने प्रयासों से की हैं. धारणीया ने बताया कि क्षेत्र में अब हिरण स्वच्छंद कुलांचे भर रहे है. तालाबों से कछुए ले जाने वालों पर अकुंश लग गया. मोर की संख्या में वृद्धि देखने को मिल रही है.  


पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए हुए सम्मानित



61 वें वन महोत्सव में अनिल धारणीया को राज्य सरकार ने पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के 'अमृता देवी स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया.
अमृता देवी स्मृति पुरस्कार से सम्मानित होते अनिल धारणीया

राज्य सरकार ने श्री धारणीया को पर्यावरण क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए 'अमृता देवी स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया व मानद वन्य जीव प्रतिपालक की उपाधि से नवाजा. रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान ने उन्हें जल संरक्षण, संग्रहण व पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य के लिए प्रतिष्ठित डालमिया पानी पर्यावरण पुरस्कार प्रदान किया है.


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