सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण : अमृता देवी

सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण : अमृता देवी


मरुभूमि यज्ञ हुआ!

बचाने प्रकृति का

आंचल विरानपन से

मनमुखि मनु के

तेज प्रहार से

कटते दरखतों

की कराह से!!


हुआ यज्ञ

विश्व को जगाने

प्रकृति की महत्ता

को समझाने

मानव जीव प्रेम

जीवट दर्शय दिखाने!!


दी आहुति

निज देह को

समर्पित कर

प्रकृति की वेदना

अपने में समाकर

निज रक्त बहाकर!!


हुआ सफल

यज्ञ 363 शीश

पूर्णाहुति लेकर

अमर अमृता का

जगाधारी संदेश देकर!!

(सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण)




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