कंकेड़ी‌ धाम : जहां जाने से भक्तों की मुरादें होती है पूरी

 कंकेड़ी‌ धाम : जहां जाने से भक्तों की मुरादें होती है पूरी

कंकेड़ी‌ धाम : जहां जाने से भक्तों की मुरादें पूरी


बिश्नोई समाज में प्रमुख मंदिरों में ‘अष्ट धाम’ श्रृंखला के मंदिरों को माना जाता है। जहां गुरु जाम्भोजी के दर्शनार्थ हर बिश्नोई जाना चाहते हैं। इन मंदिरों के इतर बिश्नोई बहुलता वाले क्षेत्रों में गुरु जम्भेश्वर भगवान के अनेक मंदिर बने हुए हैं। जहां नित्य-प्रति गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी पाठ, हवन किया जाता है और पंछियों को चुग्गा डाला जाता है। कई मंदिर बिश्नोई भक्तजनों द्वारा अपने मानसिक और शारीरिक व्याधियों से मुक्ति पाने पर बनाए गए हैं। जिनमें मेहराणा धोरा, बगरेवाला धोरा प्रमुख है। विगत वर्षों में प्रकाश में आया श्री गुरु जम्भेश्वर मंदिर कंकेड़ी धाम राणासर भी इन्हीं चमत्कारी मंदिरों में से एक है।


श्री गुरु जम्भेश्वर मंदिर हरी कंकेड़ी धाम राणासर: भोगोलिक स्तिथि 

गुरु जम्भेश्वर मंदिर कंकेड़ी धाम बीकानेर जिले की कोलायत तहसील में स्थित है। बिश्नोई पंथ के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर महाराज को भौगोलिक दृष्टि से गुरु जम्भेश्वर मंदिर कंकेड़ी‌ धाम, कोलायत तहसील की ग्राम पंचायत राणासर के गांव बिश्नोईयों का बेरा से 3 किमी उत्तर में एक रेतीले टीले पर स्थित है, जिसके पास एक कंकेड़ी का पेड़ है। इसलिए यह मंदिर ‘ककेंड़ी धाम’ नाम से पहचाना जाता है। 


स्थापना

सुदूर मरुस्थलीय टीलों के मध्य स्थित इस मंदिर की स्थापना रेत के टीले पर जांभोजी के जीवन से जुडे वृक्ष ‘ककेंड़ी’ के लगने की घटना से हुई। इस संबंध में कहा जाता है कि वर्ष 2014-15 में राणासर की रोही में रतिराम जी बेनीवाल अपनी गायों को ढुंढते हुए यहां पहुंचे। उन्होंने टीले के शिखर पर‌ ककेंड़ी के छोटे दरख्त को देखा‌। दूर-दूर तक मानव आबादी रहित फैले रेतीले धोरे पर लगी ककेंड़ी को देखकर उन्हें जाम्भोजी के वचन “हरी ककेंड़ी मंडप मेड़ी जहां हमारा वासा” याद आया। तब उन्होंने इस कंकेड़ी के वृक्ष के पास बैठकर गुरु जाम्भोजी महाराज से अरदास की,‌ यदि उनकी गाय मिल जाए तो मैं इस पवित्र कंकेड़ी वृक्ष‌ को  पानी डालकर बड़ा करुंगा। इसके बाद वो गाय‌ ढूंढने आगे बढ़े, कुछ ही दूरी उनकी खोई गाय मिल गई। उन्होंने इसे गुरु जाम्भेजी के दिव्य‌ चमत्कार के रूप में माना और इस कंकेड़ी वृक्ष की देखरेख शुरू की और इस वृक्ष के पास जाम्भोजी का स्थान / थान का निर्माण करवाया। मंदिर की स्थापना के साथ ही धीरे-धीरे आसपास के लोग यहां गुरु जांभोजी के पवित्र वृक्ष कंकेड़ी को देखने व उनके दर्शनार्थ आने लगे। आने वाले लोगों की मन्नतें पूरी हुई उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ा मुक्ति मिली। गुरु जांभोजी के इस चमत्कारिक कंकेड़ी वृक्ष के बारे में जानकारी कुछ ही समय में आसपास के विभिन्न गांव में फैल गई। दूर-दूर से लोग हर अमावस्या को हरी कंकेड़ी धाम आते हैं। वर्तमान में यहां हर अमावस्या को मेला भरता है जिसमें हजारों की तादाद बिश्नोई जन में आते हैं गुरु जाम्भोजी के हवन में आहुति देते हैं। 

मंदिर परिसर के राजस्थान सरकार ने 25 बीघा भूमि मंदिर के नाम आवंटित की है।  वि. संवत् 2080 भाद्रपद की अमावस्या भरे मेले के अवसर पर दानदाताओं ने ₹22 लाख की घोषणा की। जल्द ही यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया जाएगा।

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