बिश्नोई समाज: प्रकृति प्रेमियों का अनोखा समुदाय

बिश्नोई समाज: प्रकृति प्रेमियों का अनोखा समुदाय

बिश्नोई समाज भारत के एक अनोखे समुदाय का नाम है जो अपनी प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है। 15वीं शताब्दी में गुरु जम्भेश्वर जी द्वारा स्थापित यह समुदाय 29 सिद्धांतों का पालन करता है, जिनमें से 10 अहिंसा और पर्यावरण संरक्षण से सीधे जुड़े हैं।

बिश्नोई समाज: प्रकृति प्रेमियों का अनोखा समुदाय


बिश्नोई समाज की विशेषताएं:

  • अहिंसा: बिश्नोई समाज अहिंसा के सिद्धांत पर विश्वास करता है। वे किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।
  • पर्यावरण संरक्षण: बिश्नोई समाज पर्यावरण संरक्षण के प्रति अत्यंत समर्पित है। वे पेड़ों की रक्षा करते हैं, वन्यजीवों को बचाते हैं और जल संरक्षण के लिए कार्य करते हैं।
  • शाकाहार: बिश्नोई समाज के लोग पूर्ण रूप से शाकाहारी होते हैं। वे किसी भी प्रकार का मांस या मदिरा का सेवन नहीं करते हैं।
  • सादगी: बिश्नोई समाज सादगी में विश्वास करता है। वे भौतिकवादी सुखों से दूर रहते हैं और जीवन को सरलता से जीने पर विश्वास करते हैं।
  • समानता: बिश्नोई समाज में सभी समान हैं। स्त्री-पुरुष में कोई भेदभाव नहीं होता है।

बिश्नोई समाज का इतिहास:

बिश्नोई समाज की स्थापना 15वीं शताब्दी में गुरु जम्भेश्वर जी द्वारा की गई थी। गुरु जम्भेश्वर जी का जन्म 1451 ईस्वी में राजस्थान के नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने और लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक करने के लिए बिश्नोई पंथ की स्थापना की।

बिश्नोई समाज का पर्यावरण संरक्षण में योगदान:

बिश्नोई समाज ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए कई आंदोलन किए हैं। 1730 ईस्वी में अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया था।

निष्कर्ष:

बिश्नोई समाज एक प्रेरणादायी समुदाय है जो हमें प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण का महत्व सिखाता है। हमें इस समुदाय से सीखकर प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करना चाहिए।

बिश्नोई समाज के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • बिश्नोई समाज के लोग पेड़-पौधे और जीव-जिनावरों की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं।
  • बिश्नोई समाज के लोग 'विष्णु' का जाप करते हैं।
  • बिश्नोई समाज के लोग 'जम्भाष्टमी', 'चितल नवमी',  'अमावस्या' और खेजड़ली बलिदान दिवस जैसे त्योहार मनाते हैं।

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