संघर्ष से सफलता तक: मोडायत के सुरेंद्र बिश्नोई बने असिस्टेंट प्रोफेसर
बज्जू पंचायत समिति के मोडायत गांव से निकले सुरेंद्र बिश्नोई आज युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। जीवन की शुरुआत एक कठिन मोड़ से हुई — जब उन्होंने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया। पिता के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर आ गई। एक विधवा मां ने न सिर्फ घर चलाया बल्कि अपने बेटे को शिक्षित और काबिल बनाने का भी संकल्प लिया।
विधवा पेंशन और मजदूरी के सहारे उन्होंने सुरेंद्र की पढ़ाई का खर्च उठाया। मां ने अपनी सीमित आय से किताबें खरीदीं और बेटे को सफलता के शीर्ष मुकाम तक पहुंचाया।
संघर्षों की सिलसिलेवार यात्रा
जीवन की कठिनाइयों के बीच सुरेंद्र ने कभी हार नहीं मानी। किशोरावस्था में जीजा के पास रहकर उन्होंने फोटोग्राफी और शादी समारोहों में वेटर का काम किया — सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि अपने परिवार को सहारा देने के लिए। उन पैसों से उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की।
असफलताओं के स्वाद चखने के पश्चात सुरेंद्र को महज 2 वर्ष में ही एक के बाद एक कई सफलता मिली और उन्होंने शिक्षा विभाग के अंतिम पायदान से लेकर शीर्षक का सफर तय लिया।
सुरेंद्र पहले 3rd ग्रेड, 2nd ग्रेड व फिर 10वीं रैंक से स्कूल व्याख्याता बने और अब 65वीं रैंक के साथ सहायक आचार्य (Assistant Professor) के पद चयनित होकर की मिसाल कायम की है।
| पद | रैंक | 
|---|---|
| तृतीय श्रेणी शिक्षक (3rd Grade) | - | 
| द्वितीय श्रेणी शिक्षक (2nd Grade) | - | 
| स्कूल व्याख्याता (Lecturer) | 10वीं रैंक | 
| सहायक आचार्य (Assistant Professor) | 65वीं रैंक | 
“अवसर मिलते नहीं, उन्हें बनाना पड़ता है” — इस पंक्ति को सुरेंद्र ने अपने जीवन में चरितार्थ कर दिखाया। उनकी यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक प्रेरणा का स्रोत भी है। पश्चिमी राजस्थान के युवाओं में उन्होंने यह विश्वास पैदा किया है कि संघर्ष की राह अगर ईमानदारी और समर्पण से तय की जाए तो सफलता दूर नहीं।

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