पंथ श्रेष्ठ की परंपरा : बिश्नोई | जय खीचड़

पंथ श्रेष्ठ की परंपरा : बिश्नोई


यह परंपरा है पंथ श्रेष्ठ की
जो वृक्षों से लिपट कर
मरु भूमि में

अपना सब अर्पण कर देता है,
मरु भूमि में वृक्ष बचाने में,
पैनी कुल्हाङी गर्दन पे खा कर,
अपना रक्त जमीं पे बहा कर,
अंत तक बचाता, प्रकृति को,

शीश देकर,
नये वीर जगाता है।



‘वन’ जीव को बचाये रखने में
जान तक अपनी दे देता है।

यह परंपरा है पंथ श्रेष्ठ की
चाहे हरिण हो, या हो मोर
चाहे गोडावण हो, या कोई और

अपने बलपर,
रक्षण कर देता है।

बढ़ाता गौरव पंथ का जग में
अहिंसा का सदा पाठ पढ़ाता है
नहीं किसी की, नहीं किसी की
यह परंपरा है पंथ श्रेष्ठ की॥




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