भगवान जांभोजी की वाणी में जीवन का परम लक्ष्य - आचार्य स्वामी दिवाचार्य

 भगवान जांभोजी की वाणी में जीवन का परम लक्ष्य - आचार्य स्वामी दिवाचार्य                

भगवान जांभोजी की वाणी में जीवन का परम लक्ष्य - आचार्य स्वामी दिवाचार्य


मनुष्य को सबसे पहले इस बात का निश्चय होना चाहिए की मेरे जीवन का परम ध्येय क्या है। ध्येय या लक्ष्य से विहीन जीवन घाणी के बैल की तरह है जो चलता तो पूरे दिन है परंतु वह पहुंच कहीं भी नही पाता है। महाभारत में एक प्रसंग आता है कि भीम का पौत्र और घटोत्कच का बेटा बहुत बलशाली था। वह एक दिन में पूरी महाभारत समाप्त करने की क्षमता रखता था परन्तु उसे श्रीकृष्ण ने युद्ध शुरू होने से पूर्व ही मार दिया था क्योंकि उसका कोई लक्ष्य नही था और बिना लक्ष्य का व्यक्ति गलत लक्ष्य वाले व्यक्ति से ज्यादा खतरनाक होता है। तभी तो दुर्योधन को छोड़कर पहले बर्बरीक को मारते है भगवान श्री कृष्ण।

इस समय जगत में अधिक लोग प्राय: निरुद्देश्य ही भटक रहे है :- प्रकृति के प्रवाह में अंधे हुए बह रहे है। ऐसे लोगो को सचेत करने के उद्देश्य से ही गुरु जाम्भोजी महाराज ने कहा 

पालटीयो गढ़ काए न चेत्यो, घाती रोल भनावे।

अर्थात् हे मनुष्य! ये देह बदल रहा है फिर भी तुझे होश क्यों नहीं आया। इस काल ने तेरे देह पर अपना प्रभाव जमा लिया है। जिस देह पर तू अभिमान कर रहा है जिस देह के सौंदर्य पर इतरा रहा है वो तो

 साबण लाख मजीठ बिगुता,थोथा बाजर घाणो।

साबुन से साफ की जाने वाली ये देह दबोच ली जाएगी। यह बाहरी दिखावा सिर्फ बाजरे की भूसी के समान थोथा है। और इस दुनिया में जो तू रच पच रहा है यह उसी प्रकार है जैसे चबाए हुए को चबाना पीसे हुए को पीसना। क्योंकि जो तू कर रहा है वो करते करते कई लोग आए और चले गए।

 थिर न लाधो थाणो

उनका कोई ठिकाना नहीं बचा परंतु जो हरी भजन में रम गए उन्होंने ईह लोक तथा परलोक दोनों सुधार लिए है। परंतु ऐसे लोगो की संख्या कोई ज्यादा नहीं है बस गिने चुने लोग ही है।   क्योंकि 

 दुनिया के रंग सब कोई राचे, दीन रचे सो जाणो।

दुनिया के रंग में सब कोई रंग जाता है परन्तु धर्म रंगने वाला ही सच्चा है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है

 मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।

यततामपि सिद्धानां काश्चित्मां वेति तत्वत:।।


हजारों मनुष्यो में कोई बिरला ही मेरे लिए (भगवद्प्राप्ति के लिए ) प्रयत्न करता है। उन प्रयत्न करने वालों में से कोई बिरला ही भगवद्तत्व को जान सकता है। इसलिए गुरु महाराज ने कहा है “विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी इस जीवन के हौवे।” हे प्राणी! इस जीवन के कल्याण के लिए तू विष्णु विष्णु का जप कर। निरंतर भगवन्नाम जप से अंतः करण शुद्ध होगा और शुद्ध अंत:करण भगवान्निवास के लिए योग्य होगा तथा भगवदनुग्रह की प्राप्ति होगी भगवदनुग्रह ही मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य है।

विष्णु विष्णु भज मनवा, विष्णु जग आधार ।
विष्णु फळ अनंत रसीलो, ध्याता उतरे पार ।।




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