बिश्नोईयों के वो मंदिर जहां हर बिश्नोई जाना चाहेगा | Bishnoism.Org

 गुरु जाम्भोजी बिश्नोई समाज के प्रवर्तक है। बिश्नोई समाज में गुरु जांभोजी को साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है और इसी रुप गुरु जांभोजी की पूजा की जाती है। बिश्नोई समाज में गुरु जाम्भोजी से बढ़कर कोई नहीं है।  गुरु जंभेश्वर महाराज से संबंधित जितने भी महत्वपूर्ण स्थान है वो सभी बिश्नोई समाज के लिए पूजनीय स्थल है।

बिश्नोईयों के वो मंदिर जहां हर बिश्नोई जाना चाहेगा | Bishnoism.Org


गुरु जाम्भोजी ने अपने जीवन काल में जिन स्थानों का भ्रमण किया था और और वहां ठहर कर ज्ञान का उपदेश दिया था वे स्थान साथरी कहलाते हैं । इन पवित्र स्थानों पर गुरु जाम्भोजी के मन्दिर बने हुए हैं और वहां हर अमावस्या को बिश्नोई समाज के मेले लगते हैं।  जिनमें देश के कोने -कोने से श्रद्धालु बड़े ही आदर भाव से गुरु जाम्भोजी के दर्शनार्थ पहुंचते हैं। जांभोजी के इन मंदिरों साथरियों में नित्य प्रति श्री गुरु जंभेश्वर शब्दवाणी के सस्वर  पाठ के साथ हवन अवश्य ही होता है और मंदिर के आसपास पक्षियों के लिए चुगा बिखेरा जाता है। 

  

हम आपको इस पोस्ट में बिश्नोई समाज के उन मंदिरों के बारे में बताएंगे जहां हर बिश्नोई जाना चाहता है। इन मंदिरों की गिनती बिश्नोई समाज के प्रमुख मंदिरों में होती है जिनका संबंध गुरु जांभोजी के जीवन काल से किसी ने किसी प्रकार जुड़ा हुआ है। इन प्रमुख मंदिरों में 8 मंदिरों को शामिल किया गया है जिन्हें ‘अष्ट धाम’ के नाम से जाना जाता है। ‘अष्ट धाम’ में गुरु जाम्भोजी की जन्मस्थली पीपासर, बिश्नोईयों का आद्य स्थल (जहां बिश्नोई समाज की स्थापना की गई) समराथल धोरा, निर्वाणस्थली लालासर साथरी, समाधि स्थल मुक्तिधाम मुकाम, रोटू, चिंपी-चोला धाम जांगलू, जाम्भोलाव धाम, लोदीपुर धाम को गिना जाता है। लोदीपुर धाम को छोड़कर समस्त मंदिर राजस्थान में स्थित है जबकि लोदीपुर धाम उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद में स्थित है। इन मंदिरों की परिक्रमा हर बिश्नोई करना चाहता है। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि इन मंदिरों के अलावा दूसरे मंदिरों का बिश्नोई समाज में महत्व कमतर है। 



‘अष्ट धाम’ श्रृंखला के मंदिर


 Guru Jambheshwar Mandir Pipasar: गुरु जम्भेश्वर मंदिर पीपासर 

गुरु जम्भेश्वर मंदिर पीपासर : Guru Jambheshwar Mandir Pipasar



गुरु जम्भेश्वर मंदिर पीपासर : पीपासर की पावन धरा पर गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अवतार लिया था। गुरु जम्भेश्वर मंदिर पीपासर जिला नागौर से 45 कि.मी. उत्तर में स्थित है। ग्राम पीपासर में गुरु जम्भेश्वर भगवान ने संवत् 1508 भादव बदी अष्टमी को अर्धरात्रि के समय श्री लोहट जी पंवार के घर अवतार लिया था। उस जगह पर इस समय मन्दिर बना हुआ है और यह स्थान उनके घर की सीमा में है, जिसके पूर्व की ओर छोटी-सी गुमटी है। बताया जाता है कि उस स्थान पर गुरु जम्भेश्वर भगवान का अवतार/जन्म हुआ है।

 गुरु जम्भेश्वर ने जिस कुएं से काचे करवे व धागे से जल निकाल उसी से दीप प्रज्जवलित किये और प्रथम सबद का उच्चारण करके तांत्रिक को पर्चा दिया था वह इसी गांव में ही है। अब वह कुआं बन्द पड़ा है। इसी कुएं से पशुओं को पानी पिलाते हुए राव दूदा मेड़तिया ने गुरु जम्भेश्वर को देखा तथा आश्चर्य चकित हुआ था। 

इस कुएं और मन्दिर के बीच एक पुराना खेजड़ी का वृक्ष भी मौजूद है जहां राव दूदा मेड़तिया ने अपनी घोड़ी बांधी थी और गुरु जम्भेश्वर की शरण में आया था। इसी स्थल पर गुरु जम्भेश्वर ने राव दूदा को मेड़तापति होने का वरदान दिया और केर की तलवार (मूठ) दी थी। गुरु जम्भेश्वर के आशीर्वाद के फलस्वरूप उसे खोया राज्य पुनः प्राप्त हुआ था। 

सम्भराथल पर रहना प्रारम्भ करने से पूर्व तक गुरु जम्भेश्वर पीपासर में रहते थे। यहां जन्माष्टमी की मेला लगता है। पीपासर में साथरी के अलावा गुरु जम्भेश्वर भगवान का मन्दिर भी बना हुआ है। अब यहां पर राजस्थान सरकार की ओर से एक पेनोरमा भी बनाया गया है, जिसमें गुरु जम्भेश्वर भगवान के जीवन को आधुनिक उपकरणों के माध्यम से दर्शाया गया है। निज मन्दिर में धोक लगाने वाले सभी श्रालुजन पीपासर दर्शनार्थ अवश्य जाते हैं। 


Guru Jambheshwar Mandir Samrathal Dhora: गुरु जम्भेश्वर मंदिर समराथल धोरा 

गुरु जम्भेश्वर मंदिर समराथल : Guru Jambheshwar Mandir Samrathal
गुरु जम्भेश्वर मंदिर समराथल धोरा



 गुरु जम्भेश्वर मंदिर समराथल धोरा : यह बीकानेर जिले की नोखा तहसील में स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से गुरु जम्भेश्वर मंदिर समराथल, मुकाम से 2 किमी दक्षिण में तथा पीपासर से लगभग 10-12 कि.मी. उत्तर में स्थित है। बिश्नोई समाज में समराथल का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि समराथल धोरा बिश्नोई समाज का उत्पत्ति स्थल है। यह स्थान गुरु जाम्भोजी का प्रमुख उपदेश स्थल रहा है। यहां गुरु जाम्भोजी 51 वर्ष तक मानव कल्याण हेतु लोगों को ज्ञान का उपदेश देते रहे। विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करने के बाद गुरु जाम्भोजी यहीं आकर निवास करते थे।

 गुरु जाम्भोजी ने यहां १५४०-१५९३ वि.संवत तक निवास किया। समराथल बालू रेत का बहुत बड़ा  धोरा है। इस स्थल के सबसे शिखर की चोटी पर गुरु जाम्भोजी विराजमान थे और हवन किया करते थे। 

समराथल हरि आसन, आसन्न धाम मुकाम।

 बिश्नोई समाज की स्थापना : समराथल धोरा

  सम्वत् १५४२ में इसी स्थान पर गुरु जाम्भोजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से अकाल पीड़ितों की सहायता की थी। समराथल पर गुरु जांभोजी ने संवत् 1542 कार्तिक वदी अष्टमी को बिश्नोई समाज की स्थापना की थी। गुरु जम्भेश्वर समाधि स्थल मुक्ति धाम मुकाम में लगने वाले मेलों में पहुंचने वाले श्रद्धालु सर्वप्रथम समराथल धोरा धाम पहुंच कर गुरु जांभोजी को थोक लगाते हैं व पाहल ग्रहण करते हैं। समराथल को सोवन नगरी, थलां, थल, संभरि आदि से भी जाना जाता है।

गुरु जंभेश्वर मंदिर समराथल धोरा का निर्माण

गुरु जंभेश्वर मंदिर समराथल धोरा केे निर्माण में ब्रह्मलीन स्वामी चंद्र प्रकाश जी व ब्रह्मलीन स्वामी रामप्रकाश जी महाराज ने महती भूमिका निभाई। वर्तमान में समराथल धोरा पर इन्हीं संतो की परंपरा के दो आश्रम है।

समराथल धोरा मंदिर के पूर्व की ओर नीचे तालाब  बना हुआ है। समराथल पर धोक लगाकर  श्रद्धालु यहां से श्रद्धानुसार मिट्टी धोरे पर लाता है जो उनकी श्रद्धा व आस्था का प्रतीक है।  किदवन्ती है कि यहीं से गुरु जांभोजी ने अपने पांचों शिष्यों खीयां, भीयां, दुर्जन, सेंसों और  रणधीर जी को सोनम नगरी में प्रवेश वाया था।

 बिश्नोई समाज का आद्य धाम : गुरु जंभेश्वर मंदिर समराथल धोरा

श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर समराथल धोरा बिश्नोई समाज का आद्य धाम है। यहां आकर प्रत्येक बिश्नोई अपने आप को गुरु जाम्भोजी कि शिक्षा से जुड़ा हुआ पता है। कार्तिक वदी अष्टमी से दीपावली तक बिश्नोई जन धर्म स्थापना महोत्सव मनाते हैं। इस दौरान बिश्नोई लोग समराथल आकर यहां होने वाले जाम्भाणी यज्ञ में सम्मिलित होते और संध्या वेला में दीपक जलाते हैं। 


Guru Jambheshwar Mandir mukam : गुरु जंभेश्वर मंदिर मुकाम  

गुरु जंभेश्वर मंदिर मुकाम : Guru Jambheshwar Mandir mukam



गुरु जंभेश्वर मंदिर मुकाम : मुकाम बीकानेर जिले के नोखा तहसील में स्थित है जो कि नोखा से लगभग 16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पर गुरु जाम्भोजी की पवित्र समाधि स्थित है। इसलिए बिश्नोई समाज में मुकाम मंदिर का सर्वाधिक महत्व है। गुरु जंभेश्वर मंदिर मुकाम को मुक्ति धाम मुकामनिज मंदिर आदि नामों से जाना जाता है। मुकाम मंदिर के पास तालवा गांव स्थित है। किदवंती है कि गुरु जम्भेश्वर महाराज ने अपने स्वर्गवास से पहले समाधि के लिए खेजड़ी व जाल के वृक्ष की निशानी की बतायी और कहा था कि वहां 24 हाथ की खुदाई करने पर शिवजी का धुणा व त्रिशूल खुदाई में मिला। त्रिशूल आज भी श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर मुकाम मुकुट पर लगा हुआ है और खेजड़ा मन्दिर परिसर में स्थित है।

मींगसर बदी नवमी विक्रमी सम्वत् 1593 में देश के सहजधर्मी एवं प्राणी मात्र के कल्याणर्थ महान अवतार श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान ने संसार में अपनी लीला पूर्ण करके समाधि ली थी।

गुरु जंभेश्वर मंदिर मुकाम में वर्ष में दो मेले लगते हैं 

मुकाम में वर्ष में दो मेले लगते हैं : मुक्ति-धाम मुकाम में महा-शिवरात्री के दूसरे दिन फाल्गुण बदी अमावस्या एवं आसोज बदी अमावस्या को दो बड़े भारी मेले लगते हैं। फाल्गुन की अमावस्या का मेला प्रारंभ से चला आ रहा है परंतु आसोज के मेले का प्रारम्भ जांभाणी परंपरा के महान संत विल्होजी महाराज ने किया। 

वर्तमान में वर्ष पर्यंत प्रत्येक अमावस्या को देश के कोने कोने से श्रद्धालु जन यहां पहुंच कर गुरु जांभोजी के चरणों में शीश नवाते हैं।   श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की शब्दवाणी के साथ सभी 12 मेलों से दो दिन पहले से ही विशाल हवन होता है जिसमें कई मण घी व खोपरे होमे जाते है। आने वाले श्रद्धालु हवन के लिए घी के साथ पक्षियों के लिए चुगा भी लाते हैं जो वर्ष पर पक्षियों को डाला जाता है।

 

धन्य परैवा बापड़ा, छाजै बसै मुकाम।

चुण चुगै गुटका करै, सदा चितारे राम।।


  मुक्ति धाम मुकाम में विगत कई वर्षों से निशुल्क भंडारे की व्यवस्था है। श्री गुरु जंभेश्वर सेवक दल के तत्वधान में सुचारू रूप से मुकाम में भंडारा संचालित होता है।

  अब गुरु जंभेश्वर महाराज की समाधि स्थल पर बनेे मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है जो शिल्प व नमूने की दृष्टि से अपने आप में श्रेष्ठ हैं।

मुकाम मंंदिर के आसपास दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं के व्यक्तिगत मकान भी है अनेक धर्मशाला मुकाम मंदिर परिसर के आसपास बनी हुई है। मुकाम मंदिर में लगने वाले मेलों की संपूर्ण व्यवस्था बिश्नोई समाज की सर्वोच्च संस्था महासभा व श्री गुरु जंभेश्वर सेवक दल द्वारा की जाती है।


 

Guru Jambheshwar Mandir Rotu Dham : गुरु जंभेश्वर मंदिर रोटू धाम 

गुरु जंभेश्वर मंदिर रोटू धाम : Guru Jambheshwar Mandir Rotu Dham



रोटू धाम :  रोटू तहसील जायल, जिला नागौर से लगभग 45 किमी पूर्वोत्तर में स्थित है। बिश्नोई समाज अष्ट धामों में से एक रोटू धाम है। वर्तमान में यहां भव्य मंदिर बना हुआ है जिसमें खांडा रखा हुआ है।


गुरु जांभोजी द्वारा रोटू की नौरंगी बाई को भात/मायरा भरना

गुरु जांभोजी ने अक्षय तृतीया विक्रमी संवत 1572 को जोखोजी भादू की पुत्री उमा/नौरंगी को भात भरा था। लोक व्याख्यानों के अनुसार जिस स्थान पर आकर गुरु जंभेश्वर जी महाराज रूके वहां पर एक सुखा हुआ खेजड़ी का पेड़ था जो स्वतः ही हरा-भरा हो गया था। उसी समय अनुयायियों की प्रार्थना पर जांभोजी ने खेजड़ियों का बाग लगा दिया था। यह कहा जाता है कि रोटू ग्राम में चिड़िया व अन्य पक्षी फसलों से दाना नहीं चुगते किंतु यहां खेजड़ियों में बैठकर विश्राम करते हैं।

गुरु जांभोजी के स्पर्श से खेजड़ी का पेड़ हरा हो गया था। कालांतर में श्रद्धालुओं ने उसके पास चौकी बनाकर पूजा स्थल बना दिया। जहां वर्तमान में भव्य मंदिर बना दिया गया है। रोटू धाम में गुरु जांभोजी के‌ पत्थर पर अंकित चरण चिन्ह व एक खांडा मौजूद है। 

रोटू ग्राम की बाशिंदे आज भी गुरु जांभोजी की शिक्षा का अक्षरत पालन करते हैं। पिछले बरस पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती अनूठी सड़क राष्ट्रीय चैनलों पर चर्चा का विषय बनी थी। वह सड़क रोटू ग्राम की थी, सड़क का निर्माण खेजड़ी के वृक्ष को बचाते हुए किया गया हैै।


Guru Jambheshwar Mandir Jambholav Dham : गुरु जंभेश्वर मंदिर जाम्भोलाव धाम 

जाम्भोलाव धाम :  Guru Jambheshwar Mandir Jambholav Dham



गुरु जम्भेश्वर मंदिर जाम्भोलाव : यह तीर्थ राज्य की फलौदी तहसील जिला जोधपुर से 24 कि.मी. उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। यहां एक बड़ा व दर्शनीय तालाब है जिसको स्वयं जाम्भोजी ने १५६६ वि संवत में खुदवाना शुरू किया था, जिसकी १५७० वि. संवत के बाद तक खुदाई होती रही। इसी तालाब के ठीक उत्तर दिशा की तरफ अत्यन्त निकट ही मन्दिर है। 

 जाम्भोलाव पर बने मन्दिर में सफेद मकराने के पत्थर का एक सिंहासन है। कहते हैं कि इसी पर बैठकर गुरु जाम्भोजी तालाब को खुदाई का काम देखते थे। जाम्भोलाव धाम से थोड़ी दूरी पर जाम्भा नामक गांव है। यहां साधुओं की दो परम्पराएं हैं- एक आगूणी जागा और दूसरी आथूणी जागां। तालाब के पास पशुओं की कर माफी का एक शिलालेख लगा हुआ है। 

जाम्भोलाव को विसन तीर्थ, कलियुग का तीर्थ, विसन तालाब एवं मुकुट मणि आदि नामों से जाना जाता है। इस जाम्भाणी सरोवर का लोक प्रचलित नाम जाम्भोलाव है। किदवंती है कि इस स्थान पर कपिल मुनि ने तपस्या की थी और पाण्डवों ने भी यज्ञ किया था। गुरु जाम्भोजी ने इसे कलियुग में प्रकट किया था।


जांभोलाव धाम में माधो मेला  की शुरुआत

जांभोलाव धाम में वर्षभर में दो मेले लगते है- एक चैत्र की अमावस्या को और दूसरा भादपद की पूर्णिमा को। दोनों मेलो को संत विल्होजी ने प्रारम्भ करवाये थे। पहला मेला सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया या । दूसरे मेले के लिये विल्होजी ने पली गांव के माधो जी गोदारा का सहयोग लिया था। यह माधो मेला के नाम से से जाना जाता है। जाम्भाणी संतों ने इसका महत्व अड़सठ तीर्थ से भी अधिक माना है। आने वाले श्रद्धालु तालाब में स्नान करते है, मिट्टी निकालते है, साधुओं को भोजन करते हैं और सूत फिराते हैं। कहते हैं जाम्भोलाव तालाब में स्नान करने से शारीरिक और मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं।

 जाम्भोलाव, बिश्नोई समाज में सामाजिक फैसले के लिए प्रसिद्ध है यहां किए गए फैसले अंतिम माने जाते हैं।

 जाम्भोलाव में दो प्रकार के संत परंपराएं होने के कारण मंदिर व तालाब की व्यवस्था आधे माह आथूणी जागा और आवे माह आगुणी जागा के सन्त करते हैं।


 Guru Jambheshwar Mandir Lodipur Dham : गुरु जंभेश्वर मंदिर लोदीपुर धाम 

गुरु जंभेश्वर मंदिर लोदीपुर धाम : Lodhipur Dham



  गुरु जंभेश्वर मंदिर लोदीपुर धाम : उत्तर प्रदेश में स्थित बिश्नोई समाज का सबसे बड़ा मंदिर व अष्ट धाम में से एक लोदीपुर धाम है।

लोदीपुर धाम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद‌ जिले में स्थित है। लोदीपुर, मुरादाबाद से लगभग 5 कि.मी. दूर मुरादाबाद-दिल्ली रेलवे लाईन पर है। गुरु जाम्भोजी भ्रमण के समय लोदीपुर पहुंचे थे। यहां गुरु जांभोजी अपने अनुयायियों में वृक्ष-प्रेम की भावना जाग्रत करने के उद्देश्य से खेजड़ी का एक वृक्ष लगाया था, जो आज भी यहां मौजूद है। इसी खेजड़ी के समीप गुरु जांभोजी का सुंदर मंदिर बना हुआ है।

 लोदीपुर धाम में प्रति वर्ष चैत्र की अमावस्या को विशाल मेला लगता है। इस मेले में शहर के अलावा प्रदेश के अन्य स्थानों से भी हजारों श्रद्धालु गुरु जांभोजी के दर्शन करने आते हैं। 



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 Guru Jambheshwar Mandir jangloo : गुरु जंभेश्वर मंदिर जांगलू

Guru Jambheshwar Mandir jangloo : गुरु जंभेश्वर मंदिर जांगलू



गुरु जंभेश्वर मंदिर जांगलू : यह देशनोक से लगभग 10-12 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। जांभोजी का यह मंदिर बीकानेर जिले की नोखा तहसील के निकटवर्ती ग्राम जांगलू स्थित है। जांगलू मंदिर में गुरु जाम्भोजी का चोला और चींपी रखे हुए है। कहते हैं कि यहां रखी हुई चींपी वही है, जो सैंसा के घर खंडित हो गई थी। इस चींपी को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा गया है।

 जांभाणी इतिहासकारों के अनुसार मेहोजी मुकाम से चोला, चींपी एवं टोपी लेकर जांगलू आये थे। मुकाम के थापनों के निवेदन पर टोपी तो मेहोजी ने वापिस दे दी थी और शेष दोनों वस्तुएं जांगलू मन्दिर में आज भी सुरक्षित है। मन्दिर के पास ही मेहोजी की समाधि है। जांगलू के वर्तमान मन्दिर की नींव संत मनरूप जी ने सम्वत् 1883 में चैत सुदी नवमी, सोमवार को रखी थी। वर्तमान में यहां गुरु जांभोजी का भव्य मंदिर बना हुआ है।

 जांगलू मन्दिर में प्रतिवर्ष दो विशाल मेले भरते हैं। प्रथम चेत्र की अमावस्या तथा दूसरा भादवा की अमावस्या को मेला भरता है। गुरु जंभेश्वर मंदिर जांगलू को भसेवडा के नाम से भी जानते हैं। श्रद्धालु जन मनोकामना पूर्ति हेतु यहां घी की डिब्बी चढ़ाते हैं। 


वरींगाळी नाडी : जांगलू


वरींगाळी नाडी : जांगलू ग्राम से लगभग 5 किलोमीटर दूर साथरी स्थित है जहां गुरु जांभोजी ने अपने शिष्यों के साथ विश्राम किया था। साथरी के उत्तर की ओर चौकी बनी हुई है वहां गुरु जांभोजी ने हवन किया था। चौकी के पास ही कंकेड़ी का वृक्ष है आख्यानों के अनुसार इसे गुरु जांभोजी ने लगाया था।

 यहां से थोड़ी दूरी पर एक तालाब/नाडी स्थित है जिसे बरसिंह बणियाल ने खुदवाया था इसी कारण इस नाडी का नाम वरींगाळी नाडी पड़ा। श्रद्धालु जन मनोकामना पूर्ण करने के लिए इस नदी में स्नान करते हैं और मिट्टी निकालते हैं।


 श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर लालासर साथरी : Lalasar Sathri

श्री गुरु जंभेश्वर मंदिर लालासर साथरी : Lalasar Sathri



लालासर साथरी : लालासर साथरी बीकानेर जिले की नोखा तहसील में है। यह नोखा में लगभग 50 कि.मी दक्षिण-पूर्व में है तथा लालासर गांव से 6 किमी तथा मुकाम से 25-30 किमी दूर में स्थित है। लालासर साथरी, गुरु जाम्भोजी का निर्वाण स्थल है। 

बिश्नोई समाज के प्रवर्तक गुरु जाम्भोजी ने मिगसर वदी नवमी सम्वत् 1593 को लालासर में अपना भौतिक शरीर त्याग दिया था। बिश्नोई लोग इस दिन को 'चिलत नवमी' भी कहते हैं। ध्यातव्य रहे कि लालासर साथरी पर स्थित हरी ककड़ी के नीचे गुरु जाम्भोजी ने अपना शरीर त्यागा था। वर्तमान में इस कंकेड़ी के चारों ओर पक्का चबूतरा बना हुआ है।

 मुकाम में लगने वाले दोनों मेलों के समय श्रद्धालु यहां साथरी के दर्शन करने के लिये भी आते हैं। यहां चिलत नवमी की मेला भी लगता है। बिश्नोई समाज की युवा सतत सचेतक स्वामी सच्चिदानंद जी आचार्य के प्रयासों से अब लालासर साथरी में गुरु जांभोजी का भव्य मन्दिर बनाया गया है। यहां स्वामी सच्चिदानंद जी आचार्य अपने गुरु महंत राजेंद्रानंद जी महाराज की देखरेख में गौशाला का भी संचालन कर रहे हैं। मंदिर के आसपास धर्मशाला का निर्माण भी किया गया है। लालासर साथरी में भंडारे की व्यवस्था नित्य प्रति सुचारू रूप से चलती है।





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