गुरु जम्भेश्वर जयंती : हरियाणा के राजकीय कलेंडर में जम्भेश्वर जन्मोत्सव/जन्माष्टमी को किया शामिल

 


गुरु जम्भेश्वर जयंती : हरियाणा के राजकीय कलेंडर में जम्भेश्वर जन्मोत्सव/जन्माष्टमी को किया शामिल 

गुरु जम्भेश्वर जयंती : हरियाणा के राजकीय कलेंडर में जम्भेश्वर जन्मोत्सव/जन्माष्टमी को किया शामिल


हरियाणा सरकार ने साल 2024 के राजकीय कैलेंडर में दुनिया में प्रथम पर्यावरणविद के रूप प्रसिद्ध एवं बिश्नोई समाज के पूजनीय देव गुरु जम्भेश्वर भगवान की जयंती को प्रकाशित किया है। सरकारी कलेंडर में समाज इष्ट देव के जन्म दिवस को राज्य के विशिष्ट दिवस में स्थान देकर सरकार ने आमजन के बीच उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रचारित करने में योगदान दिया है। बेशक बिश्नोई धर्म के प्रवर्तन को 538 वर्ष हो गए हैं लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में इसकी जानकारी सीमित जनसमुदाय तक ही पहुंच सकी है। सन् 1730 में समाज के 363 वीर शहीदों ने वृक्षों की रक्षा में अपने प्राण उत्सर्ग किए थे जो अपने आप में दुनिया भर में एक अनूठी मिसाल है लेकिन मानवता हेतु किए गए इतने महान बलिदान एवं योगदान के बावजूद को व्यापक पहचान नहीं बन पाई है। कभी किसानी व्यवसाय तथा ग्रामीण अंचल में रहने वाला बिश्नोई निःसंदेह आज कदमताल कर रहा है फिर भी वह अपनी पहचान बताने के लिए विवश है। 




बिश्नोई समाज गत 500 वर्षों से गुरु जम्भेश्वर भगवान की जयंती यानि जन्माष्टमी पर्व मनाता आ रहा है। संयोगवश इसी दिन योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की जयंती यानि जन्माष्टमी भी पड़ती है जिस कारण देश व दुनिया में यह त्योहार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में ही ज्यादा प्रचारित हुआ है। राजस्थान में बिश्नोई बाहुल्य इलाकों तथा हरियाणा व पंजाब के कुछ गिनेचुने शहरों या गांवों को छोड़ दें तो गुरु जम्भेश्वर जयंती पर कोई औपचारिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता। इन सबमें भी जन्माष्टमी के अवसर पर बड़ा कार्यक्रम हरियाणा के हिसार में किया जाता रहा है जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से बिश्नोईजन व श्रद्धालु हिस्सा लेते रहे हैं। अभी पिछले कुछ वर्षों से गुरु जम्भेश्वर भगवान की जन्म स्थली पीपासर में भी जन्माष्टमी कार्यक्रम आयोजित होने लगा है। जाहिर है इन दो स्थान विशेष के अलावा देश के किसी भी हिस्से में बड़े स्तर पर गुरु जम्भेश्वर जयंती यानि जन्माष्टमी कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता है। बिश्नोई समाज में इस धारणा को लेकर भी कोई दुविधा नहीं है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है जबकि जम्भेश्वर जन्माष्टमी कार्यक्रम सामान्य रूप में होता है। क्योंकि जाम्भाणी साहित्य के अनुसार गुरु जम्भेश्वर भगवान को श्रीकृष्ण भगवान का ही अवतार माना जाता है। लेकिन जहां तक उनकी जयंती के प्रचार-प्रसार की बात है अन्य समुदायों को इस बाबत कोई जानकारी नहीं है। उनके लिए जन्माष्टमी पर्व का अर्थ कृष्ण जन्माष्टमी है। अब हरियाणा सरकार ने आधिकारिक तौर पर गुरु जम्भेश्वर जयंती को सरकारी रिकार्ड में दर्ज किया है जिससे उम्मीद है कि वृहद स्तर पर लोगों को गुरु जम्भेश्वर के जन्मोत्सव, उनके सिद्धांत, शिक्षाएं, उपदेश, परम्पराएं, सामाजिक योगदान, साहित्य तथा मानव जाति के कल्याण हेतु किए गए धर्म कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।


गुरु जम्भेश्वर जयंती को सरकारी अभिलेख में शामिल करने पर पूरा बिश्नोई समाज हर्ष एवं गर्व का अनुभव कर रहा है। समाज की विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों, प्रचारकों, साधु-संतों, नेताओं ने इस कार्य के लिए सरकार को साधुवाद दिया है तथा भविष्य में अपेक्षा करता है कि जिस तरह से सरकार ने गुरुजी की जयंती को विशिष्ट स्वरूप प्रदान किया है, उसी तरह उनके सिद्धांतों पर चलते हुए तथा विश्व में प्रथम बार पर्यावरण रक्षा का संदेश देने शहीद हुए 363 महान वीरों के उत्सर्ग दिवस को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में आधिकारिक तौर मान्यता प्रदान करें। चूंकि 363 बिश्नोई वीरों का शहीदी दिवस ही वास्तव में विश्व पर्यावरण दिवस के आयोजन की सार्थकता को सिद्ध करता है, अन्यथा 5 जून तो महज कुछ देशों का एक सम्मेलन था जो पर्यावरण संरक्षण बारे कार्य करने को लेकर प्रारंभ हुआ था।


साभार :

  •  अमर ज्योति पत्रिका (बिश्नोई समाज की मासिक सामाजिक पत्रिका)

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